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देश की प्रगति में अध्यापक का स्थान सर्वोपरी

  यह एक निर्विवाद सत्य है कि समाज और राष्ट्र के निर्माण में अध्यापक का स्थान अत्यंत ही महत्वपूर्ण है. राष्ट्र का सच्चा और वास्तविक निर्माता अध्यापक ही माना जाता है. जिस प्रकार पौधे को वृक्ष रुप में परिवर्तित करने के लिए अथक परिश्रम द्वारा उसकी देखभाल की जाती है ठीक उसी प्रकार विद्यालय रुपी उपवन में विकसित होने वाले शिशु रुपी पौधों का सर्वांगीण विकास अध्यापक द्वारा किया जाता है. वह अपने विद्यार्थियों को शिक्षित और ज्ञानवान बनाकर ज्ञान की एक ऐसी अखंड ज्योति जला देता है जो देश और समाज के अंधकार को दूर कर सत्य और न्याय का प्रकाश फैलाती है. विद्यार्थी राष्ट्र के भावी कर्णाधार हैं और इनका नैतिक, मानसिक तथा शारीरिक विकास अध्यापक के ऊपर ही निर्भर है. पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में योग्य, परिश्रमी तथा ईमानदार व्यक्ति की ही आवश्यकता होती है. ऐसे योग्य व्यक्ति को शिक्षित बनाने और पूर्णरुपेण तैयार करने का कार्य अध्यापक ही करता है. प्राचीन काल में तो हमारे देश में अध्यापक का सम्मान बहुत ही अधिक होता था. नालंदा और तक्षशिला के विश्वविद्यालय अपने विद्वान आदर्श अध

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